padoshi

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تم النشر بواسطة emmajain001

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जैसे ही रात के दस बज़ते हैं मेरी मम्मी बोलती है।

कविता रात बहुत हो गई है अब सो जाओ।

मैं समझ जाती हूँ कि वो मुझे इसलिए सोने को बोल रही है क्योंकि मानव आने वाला है।

मैं मम्मी को बोलती हूँ कि मम्मी अभी तो दस ही बजे है।

नॉर्मली भी हम बारह बजे सोते हैं तो आज इतनी जल्दी क्यों।

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बस ऐसे ही आज मैं बहुत ठक गई हूँ और कल मुझे जल्दी उठना है इसलिए जल्दी सोना पड़ेगा।

अच्छा लेकिन आपको कल जल्दी क्यों उठना है? कल तो रविवार है आपको आफिस भी नहीं जाना है।

कल मुझे अपनी सहलियों के साथ किटी पार्टी में जाना है इसलिए जल्दी उठकर सारे काम करने हैं।

इसलिए जल्दी सोने को बोल रही हूँ और तु ज्यादा सवाल जवाब मत कर चुपचाप सोझा।

मैं फिर मम्मी से बहस नहीं करती हूँ और बोलती हूँ, ठीक है मम्मी मैं जा रही हूँ सोने और सोने का नाटक करती हूँ.

लेकिन दो घंटे तक नाटक करना बहुत मुश्किल होता है और सच में मैं सो जाती हूँ, फिर मेरी सीधा एक बजे आँख खुलती है क्योंकि मुझे मेरी मम्मी की चिलाने की आवाज आ रही होती है।

मेरा प्लान तो ये था कि वो दोनों सेक्स कर रहे होंगे तो मैं उन्हें रेंज हाथ पकड़ लूँगी. लेकिन वे दोनों तो बात्रूम में होते हैं. मैं खिड़की से उन्हें देखती हूँ तो मानव ने मेरी मम्मी का मुझ पकड़ा होता है और मेरी मम्मी दीवार से �

पकड़ लूँगी था. मैं ने पकड़ लूँगी था.

पर परवारत पर परवारत पर परवारत पर परवारत पर परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवारत परवा

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